गिलोय-एक चर्चा ::
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बहुत दिनों से आयुर्वेद की एक महा औषधि *गिलोय * को लेकर सोशल मीडिया पर वाद विवाद देखने को मिल रहा है ।कुछ आधुनिक चिकित्सा विज्ञानियों ने इसको यकृत के लिए हानिकारक बताया है और कहा है कि इसके सेवन से कुछ रोगियों की मृत्यु हो गयी ।
मैंने स्वयं इस study का अवलोकन किया है और पाया कि यह study कई मायनों में अपूर्ण है ।जिस गिलोय के सेवन से यकृत विकार हुआ वो वास्तव में गिलोय ही थी या बाज़ार में किसी पंसारी के यहाँ से मिलती जुलती कोई और औषधि थी या फिर गुणविहीन हो चुकी कोई विकृत गिलोय थी या किसी कमीशन धारी ,गुणवत्ता से समझौता करने वाली आयुर्वेदिक कम्पनी की गिलोय थी।इसके अतिरिक्त गिलोय का किस मात्रा में कितने समय तक प्रयोग किया गया ।रोगियों ने गिलोय किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक के परामर्श से आयुर्वेदिक चिकित्सा सिद्धांतों के अनुरूप ली थी या सोशल मीडिया के ज्ञान के आधार पर self medication लिया था ।ये सब वो प्रश्न हैं जिनका इस Study में कोई उल्लेख नहीं है,बस रोगी के कथन पर कि उसने कोरोना के इलाज के लिए गिलोय का सेवन किया था,Liver failure के लिए गिलोय को दोषी ठहरा दिया गया ।
वस्तुतः आजकल एक चलन हो गया है रोगियों द्वारा SELF MEDICATION का और चूँकि Allopathy की अधिकांश दवायें बिना डाक्टर के prescription के नहीं मिलतीं और सामान्य जनता जानती है कि अंग्रेज़ी दवाओं के गंभीर side effects हो सकते हैं अतः सिवाय इक्का दुक्का सर्दी जुकाम और बुख़ार ,दस्त आदि की दवाओं के रोगी ये दवायें स्वत: लेकर नहीं खाता ।होम्योपैथी और यूनानी दवाओं का सामान्य जनता को ज्ञान नहीं के बराबर होने से रोगी सामान्यतः स्वयं इन्हें लेकर नहीं खाता ।अब रह जाता है आयुर्वेद,जिसके बारे में यह विख्यात है कि इन दवाओं के तो कोई side effects होते ही नहीं हैं ।लोगों को अक्सर यह तक कहते सुना जाता है कि अरे ये तो जड़ी बूटी हैं अगर फ़ायदा नहीं करेंगी तो नुक़सान भी नहीं करेंगी और सबसे बड़ी लापरवाही की इन दवाओं के सेवन के लिए किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक के परामर्श की आवश्यकता नहीं है क्योंकि एक तो इन दवाओं के सेवन के लिए सोशल मीडिया पर ढेरों सलाहकार बैठे हैं जिन पर सरकार का कोई अंकुश नहीं है और दूसरा कोढ़ में खाज यह कि यह सब दवायें बिना किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक के परामर्श पत्र (Prescription) के दवाओं के स्टोर्स (यहाँ तक कि किराना स्टोर्स पर भी जहां इनके असली औषधि न होने या गुणविहीन औषधि होने की पूरी संभावना होती है) पर उपलब्ध हैं ।
जबकि यह एक सर्व विदित तथ्य है कि आयुर्वेदिक दवाओं का प्रभाव और उपयोग रोग और रोगी के बहुत सारे कारकों (दोष,दूष्य,प्रकृति,काल,देश,परिस्थिति,रोगी के बलाबल ,औषधि की गुणवत्ता आदि) पर निर्भर करता है ।इसके अतिरिक्त यह भी सबको पता है कि -
*“अति सर्वत्र वर्ज्येत “*
ऐसा नहीं है कि आप बिना किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक के परामर्श के अंधाधुंध इन दवाओं का सेवन करें और ये मानें कि इनका तो कोई दुष्प्रभाव होगा ही नहीं ।अभी कोरोना काल में ही आयुष काढ़े का अंधाधुंध सेवन किया गया,किसी ने भी उचित द्रव्यों का उचित मात्रा में मिला कर काढ़ा बनाने की ज़रूरत नहीं समझी,दिन में कई कई बार काढ़े का सेवन किया,सोशल मीडिया पर चलने वाले विभिन्न नुस्ख़ों का बिना कोई उचित परामर्श लिए मनमाना सेवन किया तो यह कहाँ लिखा है कि कोई दुष्प्रभाव नहीं होगा ।बहुत लोगों में इस तरह अंधाधुंध काढ़े और नुस्ख़ों के सेवन से Hyperacidity,Gastrointestinal discomfort और अन्य कुछ दुष्प्रभाव देखे गए ।स्वाभाविक था कि आधुनिक चिकित्सा वालों ने मौक़े का फ़ायदा उठाकर आयुर्वेदिक औषधियों के बारे में दुष्प्रचार किया ।
संदर्भ चूँकि गिलोय (Timospora cardifolia) का है तो इस विषय में यह कहना है कि हाँ यदि किसी भी अन्य औषधि की तरह गिलोय का भी अधिक मात्रा में बिना किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक के परामर्श के प्रयोग किया जायेगा और यदि औषधि गुणविहीन होगी तो निश्चित तौर पर कुछ दुष्प्रभाव देखने को मिल सकते हैं क्योंकि आयुर्वेदिक औषधियों के विभिन्न रोगों में भिन्न भिन्न प्रभाव होते हैं और औषधि किस मात्रा में कितने समय तक किस अनुपान के साथ लेनी है आयुर्वेद में यह बहुत महत्वपूर्ण है इसलिए आयुर्वेद की चिकित्सा आयुर्वेद के मूलभूत सिद्धांतों पर चलकर ही सफल होती है ।
अधिक मात्रा में,बिना रोगी की प्रकृति जाने,बिना रोगी का बलाबल जाने,बिना दोष दूष्य की स्थिति जाने अमृत समान गिलोय (इसे आयुर्वेद में अमृता नाम से भी जाना जाता है) के भी कभी-कभी निम्न दुष्प्रभाव हो सकते हैं -
(1) - Constipation ::इसके असम्यक और अत्यधिक मात्रा प्रयोग से बिबंध (constipation) हो सकता है ।गिलोय यद्यपि पाचन तंत्र की बेहतरीन औषधि है पर इसकी बहुत अधिक मात्रा के सेवन से कई लोगों में constipation (बिबंध) होते देखा गया है ।अगर गिलोय के अधिक सेवन से या अधिक समय तक सेवन से ऐसा हो रहा हो तो अपने आयुर्वेदिक चिकित्सक को बताना चाहिए,वह उसका समाधान कर देगा ।
(2) - Blood Sugar level कम होना -
गिलोय में Blood Sugar को control करने की अद्भुत क्षमता है इसलिए इसका प्रयोग Diabetes को control करने में किया जाता है ।इसका सम्यक् उपयोग Diabetic patients में Blood Sugar level को नीचे लाने में बहुत effective पाया गया है ।इसलिए यदि कोई रोगी Diabetes की कोई Allopathic medicine या और कोई औषधि खा रहा हो तो गिलोय के सेवन से उस मरीज़ का sugar level अचानक काफ़ी कम हो कर मरीज़ को परेशानी हो सकती है ।इसलिए यदि कोई Diabetes का मरीज़ पहले से किसी औषधि का सेवन कर रहा हो तो गिलोय के सेवन से पूर्व आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह लेना आवश्यक है ।
(3 )- कुछ Autoimmune disorder का प्रादुर्भाव होना —
गिलोय अपनी Immuno boosting properties के लिए प्रसिद्ध है और immuno modulator के रूप में बहुतायत से इसका उपयोग सर्वविदित है ।परन्तु कभी-कभी इसका मात्रा से अधिक और विधि सम्मत प्रयोग न करने पर Immune system के Over Stimulation से कुछ Autoimmune disorders जैसे Lupus और Rheumatoid Arthritis trigger कर सकते हैं अतः Autoimmune diseases से पीड़ित लोगों में गिलोय का सेवन अत्यधिक सावधानी के साथ उचित मात्रा में तथा किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख में ही करना कराना चाहिए ।
उपरोक्त के सम्बन्ध में मेरे कुछ मित्र व अन्य आयुर्वेदिक चिकित्सक सहमत नहीं हो सकते और कह सकते हैं कि नहीं गिलोय या आयुर्वेद की अन्य सभी औषधियों के कोई side effects नहीं हो सकते ,परन्तु ऐसा कहना हमारे शास्त्र को तर्कविहीन बना देता है ।आयुर्वेद में संसार के सभी पदार्थों को औषधि के रूप में स्वीकार किया गया है पर यह भी कहा गया है कि सम्यक् रूप से प्रयुक्त विष भी औषधि हो सकता है जबकि असम्यक रूप से प्रयुक्त अमृत भी बिष के समान हानिकारक हो सकता है ।वस्तुतः औषधियों का सम्यक् और विधि सम्मत प्रयोग आयुर्वेद के मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार हो तभी औषधियाँ अपना उचित प्रभाव उत्पन्न करती हैं ।आयुर्वेद में तो मात्र अनुपान बदलने से ही औषधियों के प्रभाव बदल जाते हैं अतः मेरा मानना है कि आधुनिक चिकित्सक जो हमारी औषधियों को लेकर दुष्प्रचार कर रहे हैं उस संबंध में विरोध उचित है पर इनके तर्कों का सदुपयोग करते हुए हम सब आयुर्वेद चिकित्सकों को सरकार पर दवाब बनाना चाहिए कि आयुर्वेदिक दवाइयाँ चाहे जितनी निरापद हों पर इनका उपयोग आयुर्वेद के मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार ही होना चाहिए और इसके लिए ये आवश्यक है कि सरकार आयुर्वेद की दवाओं की खुली बिक्री पर प्रतिबंध लगाये और यह आदेश जारी करे कि कोई भी आयुर्वेदिक औषधि चाहे
वो शास्त्रीय हो या पेटेंट हो,बिना रजिस्टर्ड आयुर्वेदिक चिकित्सक के परामर्श पत्र (Prescription) के बाज़ार में न बिक सके ।
इसके तीन फ़ायदे हैं ।
पहला- अभी आयुर्वेदिक दवा निर्माता कंपनियों की मनमानी चल रही है जिसके चलते वो आयुर्वेदिक चिकित्सक के पास पहुँचने की ज़रूरत ही नहीं समझते और किसी भी औषधि की शास्त्रीय गुणवत्ता से समझौता करके बाज़ार में बेच रहे हैं और गुणविहीन औषधियों से फ़ायदा न होने की वजह से आयुर्वेद की प्रतिष्ठा दांव पर लग रही है ।
दूसरा - ऐसा होने पर हर आयुर्वेदिक चिकित्सक को उसका उचित सम्मान मिलेगा और उसके चिकित्सा कार्य में वृद्धि होगी जिसका वो हक़दार है और उसे आयुर्वेद के विकास का पूरा फ़ायदा मिलेगा जिसको बड़ी बड़ी आयुर्वेदिक कंपनियों ने अपने तक सीमित कर रखा है ।
तीसरा - सबसे बड़ा फ़ायदा मरीज़ों को मिलेगा जिनको योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक का परामर्श प्राप्त होकर ही आयुर्वेदिक चिकित्सा मिलेगी जो निश्चित ही आयुर्वेद के सिद्धांतों के अनुरूप होने के कारण फलदायक और आशुकारी होगी ।
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