ओज और व्याधि क्षमत्व :: एक विवेचन
डा.हरीश कपूर
एम.डी.(आयुर्वेद)
आयुर्वेद में ओज को प्राण और जीवन का आधार माना गया है। हमारे शरीर में रोगों से लड़ने की जो प्राकृतिक शक्ति है वो ‘ओज’ से ही मिलती है। रोगों से लड़ने की इस शक्ति को ही रोग प्रतिरोधक क्षमता या इम्युनिटी कहा गया है। इसके अलावा भी ओज के कई गुण हैं। एक तरह से देखें तो आपका पूरा व्यक्तित्व ही ‘ओज’ पर निर्भर है। इसके पूरी तरह खत्म होने का मतलब ‘मृत्यु’ है।
आयुर्वेद में इसी रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity)को व्याधिक्षमत्व शब्द से सम्बोधित किया गया है ।व्याधिक्षमत्व शब्द चरक संहिता के अष्टाविंशोध्याय “विविधाशितपीतीय “ नामक अध्याय में गद्य 6 में आया है ।
इसका विशद विवेचन आचार्य चक्रपाणि ने प्रथम बार अपनी टीका में किया था ।आचार्य चक्रपाणि ने इसको दो aspect में विभाजित किया-
1- व्याधिबला विरोधित्वा (against to the strength and virulence of disease).
2 - व्याधि उत्पादक विबन्धकत्वा (Capacity to inhibit,contain or bind the causes or factors of disease).
व्याधिबला विरोधित्वा व्याधिक्षमत्व तब होता है जब शरीर में रोग का प्रकोप हो जाता है ।इस क्षमता के कारण रोग की प्रकोपकता एवं विकास रूक जाता है जबकि व्याधि उत्पाद विबन्धकत्वा नामक व्याधिक्षमत्व रोग को उसके सम्प्राप्ति काल में ही रोकती है और व्याधि को उत्पन्न नहीं होने देती या रोकती है ।
आचार्य चरक के अनुसार सभी व्यक्तियों में व्याधिक्षमत्व होता है और यह व्यक्ति विशेष के आहार पर निर्भर करता है क्योंकि ओज ,बल एवं व्याधिक्षमत्व सभी आहार पर निर्भर हैं ।आहार में परिवर्तन से यह तीनों प्रभावित होते हैं ।इसी प्रकार व्यक्ति की प्रकृति का भी व्याधिक्षमत्व के परिवर्तन में बहुत बड़ा योगदान होता है ।
आयुर्वेद में शरीर की हर प्राकृतिक क्षमता जो कि उत्तम स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है शारीरिक बल पर निर्भर करती है और बल स्वयं धातु,प्रकृति,देश,काल एवं ओज पर निर्भर करता है ।यह बल ही तीन प्रकार का बताया गया है- सहज,कालज एवं युक्ति कृत ।
सहज बल वह है जो किसी भी व्यक्ति को जन्मजात प्राप्त होता है और यह शुक्र और आर्तव जो गर्भाधान के कारक होते हैं उनके गुणों पर आधारित होता है ।इसे Innate Immunity कहते हैं ।यह Immunity non specific defence mechanism की तरह होती है और शरीर में किसी भी Antigen के प्रवेश के तुरंत बाद प्रभावी हो जाती है ।
कालज बल वह बल है जो किसी भी व्यक्ति को ऋतु परिवर्तन या आयु परिवर्तन के कारण प्राप्त होता है और यह अस्थायी होता है ।इसे Adoptive Immunity माना गया है ।किसी व्याधि से ग्रसित होने के बाद शरीर में जो Immunity उस व्याधि के प्रति उत्पन्न होती है उसे भी इसी श्रेणी में रखा गया है ।
तीसरा युक्ति कृत बल वह बल है जो कि कोई व्यक्ति चिकित्सक की सहायता से या स्वयं ही Diet ,Medication या अन्य तरीक़ों से से प्राप्त करता है ।आजकल modern medicine में इसे Vaccination के द्वारा प्राप्त करते हैं ।आधुनिक समय में इसे Acquired Immunity कहा जाता है जो Active तथा Passive दो तरह की होती है
।
आयुर्वेद में ओज एक बहुत मत मतांतरों वाला विषय है अतः इसके विस्तृत विवेचन की आवश्यकता है ।
#परिभाषा ::::
चरकानुमत —-
1 - येनौजसा वर्तयन्ति प्रीणिता: सर्वदेहिन: ।
यदृते सर्वभूतानां जीवितं ना वतिष्ठते ।।
यत् सारमादौ गर्भस्य यत्तद्गभर्रसाद्रस:।
संवर्तमानं हृदयं समाविशति यत पुरा ।।
यस्य नाशात्त नाशोअ्स्ति धारि यद् धृदयाश्रितम् ।
यच्छरीर रस स्नेह: प्राणा यत्र प्रतिष्ठिता: ।।
तत्फला बहुधावा ता: फलन्तीव(ति) महाफला: ।।
अर्थात
जिस पर और अपर ओज से पोषित होकर सभी प्राणी अपने जीवन का निर्वाह करते हैं अर्थात् जीवित रहते हैं, जिस ओज के बिना सभी प्राणियों का जीवन नहीं रहता है,जो ओज गर्भ के प्रारंभ में शुक्र-शोणित के सार के रूप में वर्तमान रहता है और जो ओज कललावस्था में रस के सार रूप में रहता है,जब गर्भ में हृदय की उत्पत्ति होती है तब अपने स्वरूप में रहते हुए हृदय में प्रवेश करता है,जिस ओज के नाश होने पर शरीर का नाश हो जाता है,जो हृदय में आश्रित रह कर धारि (आयु ) का धारण करता है ।जो शरीर रस का स्नेह है,जिसमें प्राण प्रतिष्ठित रहता है,हृदय उसी ओज को ओजोवह स्रोतों द्वारा सारे शरीर में धमन करता रहता है ।इन ओजोवहाओं को महाफला भी कहते हैं ।
स्पष्ट है कि गर्भस्थ ओज का निर्माण शुक्र और शोणित के संयोग से ही हो जाता है ।शुक्र अंतिम धातु है जिसके पाक से ही ओज का निर्माण बताया गया है और वाग्भट्ट ने तो ओज को शुक्र का मल बताया है।भावमिश्र ने तो आर्तव को ही अष्टम धातु माना है ।
इस प्रकार स्पष्ट है कि गर्भस्थ ओज और हृदयस्थ ओज दोनों अलग अलग हैं ।
2 - रस - रसश्चौज: संख्यात ।(च.नि.4/7)
3 - गर्भरस - यत्सारमादौ गर्भस्य यद् तद् गर्भरसाद्रस: संवर्तमानं हृदय समाविशति यत् पुरा।
(च.सू.30/9)
4 - प्राकृत श्लेष्मा -
प्राकृतास्तु बलं श्लेष्मा विकृतो मल उच्यते ।स चैवोज: स्मृत: काये स च पाप्मोपदिश्यते ।
(च.सू.17/11)
सुश्रुतानुमत ———
रसादीनां शु्क्रन्तानां धातुनां यत परं तेजस्तत् खल्वोज: तदेव बलं इत्युच्यते ।(सु.सू. 15)
वाग्भट्ट ————-
ओजस्तु तेजोधातुनां शुक्रन्तानां परं स्मृतम् ।
(अ.हृ.सू. 11)
चक्रपाणि मतानुसार -
ओज शरीर की अष्टम धातु है ।
शारंग्धर्र मतानुसार -
ओज शरीर की उपधातु है ।
भावप्रकाश के अनुसार-
सर्वधातूनां स्नेहमोज: ,क्षीरे घृतमिव ।
डल्हण के अनुसार -
जीव शोणितम् - तत्रान्तरे तु ओज: शब्देन रसोअ्पि उच्यते ।जीवशोणितमपि ओज:शब्देनामनन्ति ।
#ओज #की #उत्पत्ति ...
भ्रमरे: फलपुष्पेभ्यां यथा संग्रहियते मधु ।
तदद्वोज: शरीरेभ्यो गुणै: संभ्रियते नृणाम ।।
(च.सू.17/76)
अर्थात् जिस प्रकार भौंरे फल एवं पुष्पों से मधु एकत्रित करते हैं,उसी तरह शरीर में धात्वाग्नि अपने गुणों कर्मों के द्वारा धातुओं में से ओज को एकत्रित करती हैं ।
#ओज #का #स्वरूप ....
गर्भावस्था में उत्पन्न ओज गर्भस्थ ओज कहलाता है जबकि जन्म लेने के बाद हृदय में स्थित ओज हृदयस्थ ओज कहलाता है ।दोनों तरह के ओज का स्वरूप भिन्न भिन्न होता है ।
#गर्भस्थ #ओज #का #स्वरूप ....
सर्पिवर्ण मधुरस लाजागन्धि प्रजायते ।
(च.सू.17/75)
अर्थात् यह ओज घृत वर्ण का,मधु के समान और लाजा के समान गंध वाला होता है ।
#हृदयस्थ #ओज #का #स्वरूप ....
हृदितिष्ठति यच्छुद्धं रक्तमीषत्सपीतकम् ।
ओज: शरीरे संख्यात तन्नाशान्ना विनश्यति ।
(च.सू.17/74)
हृदयस्थ ओज के वर्ण को लेकर भी मतभेद हैं ।चरक इसे रक्तपीत,सुश्रुत शुक्ल पीताभ्,वाग्भट्ट ईषत् लोहित पीत,काश्यप अश्याव रक्त पीतकम्,चक्रपाणि श्वेत और डल्हण श्वेत,तैलीय क्षौद्र वर्ण का बताते हैं ।
#ओज #का #स्थान-
आचार्य भेल ने ओज के 12 स्थानों का वर्णन किया है यथा-त्वक,शोणित,मांस,अस्थि,मज्जा,शुक्र,स्वेद,मूत्र,पुरीष,श्लेष्मा और पित्त ।
#ओज #के #भेद...
ओज दो प्रकार का बताया गया है-
अपर ओज -यह सर्व देह व्यापी होता है और अर्ध अंजलि परिमाण होता है ।
यहाँ पर अंजलि प्रमाण स्वयं व्यक्ति विशेष का ही लिया गया है ।
पर ओज - यह हृदय स्थित होता है और अष्ट बिन्दु परिमाण होता है ।
#ओज #के #कार्य..
सुश्रुत ने ओज के निम्न कार्य बताये हैं—
*तत्र बलेन स्थिरोपचितमांसता,सर्वचेष्टा स्वप्रतिघात:,स्वरवर्णप्रसादो बाह्ययानामाभ्यन्तराणां च करणानाम् आत्मकार्य प्रतिपत्ति भवति ।*
(सु.सू.15/20)
#ओज #क्षय #के #कारण...
सुश्रुत ने ओज क्षय के सात कारण बताये हैं-
अभिघात,क्षय,क्रोध,शोक,ध्यान,परिश्रम और अनशन ।
#ओजक्षय #के #सामान्य #लक्षण...
रस धातु से लेकर शुक्र धातु तक इन सात धातुओं के सम्मिलित सार को ओज कहा जाता है ।शरीर में पाचक पित्त और अग्नियाँ धातुओं के सार से ओज का निर्माण करती हैं ।ओज का पोषण भी धातुओं की तरह आहार रस से होता है ।
ओज क्षय ही व्याधि क्षमत्व को कम करता है अतः ओजक्षय के लक्षणों से व्यक्ति विशेष की immunity का पता चलता है ।आचार्य चरक के अनुसार—
विभेति दुर्बलोअ्भीक्ष्णं ध्यायाति व्याधितेन्द्रिय:।
दुश्छायो दुर्मना रूक्ष: क्षामश्चैव ओजस:क्षये ।।
अर्थात् मनुष्य भयभीत रहता है,दुर्बल हो जाता है,सदैव चिन्तित और ध्यान मग्न रहता है, इंद्रियाँ व्यथित रहती हैं, कान्ति मलिन, मन उदास रहता है और शरीर रूक्ष एवं कृश हो जाता है ।
स्पष्ट है कि यदि इस तरह के लक्षण किसी व्यक्ति विशेष में उत्पन्न हो गये हैं तो उसकी व्याधि क्षमता (immunity) कम हो गयी है अन्यथा ओज के जो कान्ति आदि लक्षण हैं वो immunity के सामान्य होने को दर्शाते हैं ।
#ओज #व्यापद ....
ओज क्षय की तीन अवस्थाओं (stages) का वर्णन शास्त्रों में मिलता है यथा-
1 - विस्त्रंस - इसमें निम्न लक्षण होते हैं-
संधिविश्लेष,गात्राणांसदनं,दोषच्यवनं,क्रियासन्निरोध।
2 - व्यापत -इसमें निम्न लक्षण होते हैं-
स्तब्धता,गुरूगात्रता,वातशोफ,वर्णभेद,ग्लानि,तन्द्रा तथा निन्द्रा ।
3 - क्षय - इसमें निम्न लक्षण होते हैं -
मूर्च्छा,मांसक्षय,मोह,प्रलाप,अज्ञान एवं मृत्यु ।
आज के परिप्रेक्ष्य में ओज को कुछ विद्वान Blood Plasma मानते हैं ।इस सम्बन्ध में मेरा अपना मानना है कि हृदय से निकलने वाली धमनियों को ओजोवह स्रोत मानते हुए उनमें बहने वाला Blood Plasma,जिसमें विभिन्न Immunoglobulins IgG,IgA,IgM आदि होते हैं को अपर ओज माना जा सकता है जो सर्व देह में व्याप्त होते हुए रोग प्रतिरोधक क्षमता (व्याधि क्षमत्व) उत्पन्न करता है तथा हृदय में स्थित पर ओजको इन Immunoglobulins की Precursor Protein माना जा सकता है ।
यदि ये अपर ओज अर्ध अंजलि प्रमाण से कम होता है तो उसके सापेक्ष उपरोक्त Immunoglobulins की मात्रा कम होने से Immunity (व्याधि क्षमत्व) कम हो जायेगी ।
Get latest news about our clinics performance weekly on our website. healingatayurveda.in
Copyright © 2019 healingatayurveda.in. All Right Reserved.
Share This News